Tuesday, December 24, 2024

सर्दी स्पेशल

 1-          कामोत्तेजक व स्तंभक योग व बाजीकरण योग

सफेद मूसली 40 ग्राम

काली मूसली 40 ग्राम

गिलोयसत्व 40 ग्राम

सोंठ 40 ग्राम

छोटी पीपल 40 ग्राम

मुलेहठी40 ग्राम

ईसबगोल 40 ग्राम

तालमखाना 40 ग्राम

बबूल का गोंद 40 ग्राम

रूमी मस्तगी 40 ग्राम

बीजबन्द 40 ग्राम

लौंग 20 ग्राम

जायफल 20 ग्राम

केसर 1 ग्राम

शुद्ध भांग 20 ग्राम

सलाम पंजा – 40 ग्राम

सलाम मिस्री 40 ग्राम

खसखस – 25 ग्राम  

खरबूजे के बीज़ – 50 ग्राम  

मिश्री धागे वाली - 300 ग्राम

निमार्ण विधि -  भांग और मिश्री को छोड़ कर सभी बूटियों को कूट- पीस लें। इसमें धुली भांग 100 ग्राम तथा मिश्री 700 ग्राम पीसकर मिला लें। और किसी हवा बंद बर्तन में रख ले बस दवा तैयार हुआ

सेवन विधि -  10 ग्राम रात को गर्म दूध के साथ लें।

लाभ - यह अपूर्व बाजीकरण योग है। इसके सेवन से उतेजना एवं स्तम्भन दोनों प्राप्त होते हैं। अधेड़ आयु के पुरुषों के लिये यह बड़े काम की चीज है। अधिक विषय - भोग के कारण जिन पुरुषों को शीघ्रपतन हो जाता है और लिंग में पूरी उतेजना नहीं आती है तथा लिंग शिथिल रहता है, उन्हें इसका अवश्य सेवन करना चाहिये। मैथुन में पूरा आनन्द देता है। मैंने इसे कई रोगियों पर आजमाया है।

मैं एक ऐसे वैद्य राज  जी को जानता हूँ जो इसमें खोवा मिलाकर 20 20 ग्राम के पेड़े बनकर उन्हें मदनमोदक के नाम से बेचते हैं। सम्भोग से दो. घण्टे पूर्व के साथ लेने को कहते हैं। अधेड़ आयु के बहुत से लोग उनसे यह मोदक खरीदते हैं। मैंने कई बार उनसे योग पूछा तो उन्होंने नहीं बतलाया। मैंने योग जानने की तरकीब सोंची। उनके नौकर को लालच देकर उससे योग तथा उसे बनाने का तरीका ज्ञात किया तो पता चला कि यह चूर्ण है जिसमें वह खोवा बराबर मात्रा में मिलाकर मोदक तैयार करते हैं!

 2-  सर्दी स्पेशल

सफेद मूसली पाउडर  150 G

ब्लैक मूसली पाउडर 150 G

सतावरी पाउडर 30 G

अश्वगंधा पाउडर 100 G

कौच के बीज़ 100 G

शिलाजीत - 100 G

खरबूजे के बीज़ - 100 G

खोपरा - 100 G

जावीत्री - 50 G

जायफल - 10 PC

बड़ी ईलायची - 50 G

छोटी ईलायची - 10 G

लोंग - 10 G

 Chakki se piswa kar ..

 Kaju, Kishmish, Badam, Akhrot as you wish..

 Besan ki Laddoo bana k kha sakte ho... Sardi m

 

सामग्री का उपयोग आयुर्वेदिक और औषधीय दृष्टिकोण से किया जाता है। यह सामग्री आमतौर पर शरीर के विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए तैयार की जाती है। इनका उपयोग करने के फायदे और नुकसान इस प्रकार हो सकते हैं:

फायदे:

    सफेद मूसली (40 ग्राम) - यह शरीर को शक्ति प्रदान करने वाली औषधि है। इससे मांसपेशियों की मजबूती और ताकत मिलती है। यह पुरुषों के लिए कामोत्तेजक और ऊर्जा वर्धक होती है।

    काली मूसली (40 ग्राम) - यह भी शरीर को ऊर्जा देने वाली होती है और यौन शक्ति को बढ़ाने के लिए उपयोगी मानी जाती है।

    गिलोय सत्व (40 ग्राम) - गिलोय शरीर की रोग प्रतिकारक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। यह इन्फेक्शन, बुखार और इन्फ्लेमेशन को कम करने में सहायक है।

    सोंठ (40 ग्राम) - सोंठ पाचन तंत्र को सुधारने, अपच, गैस, और सूजन को कम करने में मदद करती है। यह इम्यून सिस्टम को भी मजबूत करती है।

    छोटी पीपल (40 ग्राम) - यह आयुर्वेद में पाचन क्रिया को सुधारने और शारीरिक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होती है।

    मुलेठी (40 ग्राम) - मुलेठी गले की सूजन, खांसी और सर्दी के इलाज में प्रभावी है। यह शरीर में बल और ताजगी लाती है।

    ईसबगोल (40 ग्राम) - यह पेट के लिए बहुत फायदेमंद होता है, खासकर कब्ज और आंतों की समस्याओं के लिए।

    तालमखाना (40 ग्राम) - यह शरीर को शांति और ताजगी देने के लिए उपयोगी है। यह मानसिक तनाव को कम करने और शरीर की ऊर्जा को बढ़ाने में सहायक है।

    बबूल का गोंद (40 ग्राम) - बबूल का गोंद शरीर को शारीरिक ताकत प्रदान करता है और पाचन में सहायक है। यह खून की सफाई में भी मदद करता है।

    रूमी मस्तगी (40 ग्राम) - यह मानसिक थकान, तनाव और चिंता को कम करने में सहायक है। यह यौन शक्ति को भी बढ़ाता है।

    बीजबन्द (40 ग्राम) - यह पाचन तंत्र को मजबूत करता है और शरीर की रोग प्रतिकारक क्षमता को बढ़ाता है।

    लौंग (40 ग्राम) - लौंग का उपयोग गैस, कब्ज, और अपच के लिए किया जाता है। यह शरीर में गर्मी पैदा करता है और इन्फेक्शन को भी कम करता है।

    जायफल (40 ग्राम) - जायफल पाचन शक्ति को मजबूत करता है, मानसिक तनाव को कम करता है और नींद में सुधार करता है।

    केसर (40 ग्राम) - केसर त्वचा, पाचन और मानसिक स्थिति को सुधारने में सहायक होता है। यह रक्त संचार को बढ़ाता है और शरीर को ताजगी प्रदान करता है।

    शुद्ध भांग (100 ग्राम) - शुद्ध भांग का उपयोग दर्द, मानसिक तनाव और मांसपेशियों के दर्द के लिए किया जाता है। यह स्फूर्ति और शांति प्रदान करता है।

    मिश्री धागे वाली (700 ग्राम) - यह मिठास के रूप में उपयोग की जाती है, जो शरीर को ऊर्जा देती है और पाचन क्रिया को सुधारने में सहायक है।

नुकसान:

    अत्यधिक सेवन: इन सामग्रियों का अत्यधिक सेवन शरीर में हानिकारक प्रभाव डाल सकता है। जैसे कि अधिक सोंठ से पेट में जलन हो सकती है, और अधिक मुलेठी से रक्तचाप बढ़ सकता है।

    शुद्ध भांग: शुद्ध भांग का अत्यधिक सेवन मानसिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जिससे भ्रम और मानसिक कमजोरी हो सकती है।

    सावधानी: कुछ लोगों को इन सामग्रियों से एलर्जी हो सकती है, जैसे कि लौंग, जायफल, या भांग। इनका सेवन किसी योग्य चिकित्सक की सलाह से करना चाहिए।

    मधुमेह और उच्च रक्तचाप: मिश्री और अन्य मीठे पदार्थ मधुमेह और उच्च रक्तचाप वाले व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो सकते हैं, इसलिए इनका सेवन सीमित करना चाहिए।

निष्कर्ष:

इन सामग्रियों का सेवन आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से फायदेमंद हो सकता है, लेकिन उचित मात्रा और सावधानी के साथ किया जाना चाहिए। इन्हें किसी विशेषज्ञ या आयुर्वेदाचार्य की सलाह के अनुसार ही सेवन करना बेहतर होता है।

Thursday, September 5, 2024

मस्सा का इलाज

 
 मस्सा हटाने की दवा
इसे जाता है। बहुधा इनकी उत्पत्ति हाथों की अंगुलियों, कुहनी, घुटनों, चेहरे पर होती है। अधिसंख्यक वार्ट्स बिनाइन होते हैं। लेकिन जिन लोगों में रोगों से लड़ने की क्षमता कम होती है, उनमें भी इनके कैंसर-युक्त होने की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं। आयुर्वेद में इन्हें चर्मकील भी कहा गया है। यह रोग त्वचा में रहने वाली वायु के विकृत होने पर होता है।
उपचार

स्वर्णवंग-1 ग्राम

शुद्ध गंधक-10 गाम प्रवाल पिष्टी 10 गाम गिलोय सत्व-20 ग्राम

इन सब औषधियों को एक साथ मिलाकर साठ पुड़िया बनालें तथा एक एक पुड़िया सवेरे सायं शहद के साथ खाली पेट सेवन करें। सायंकाल औषधि सेवन करने के आधा घंटा पहले एवं आधे घंटे बाद तक कुछ भी न खाएं।

आरोग्यवर्धनी वटी दो दो गोली सवेरे सायं भोजन के बाद मेदोहर गूगल दो दो गोली सवेरे सायं, भोजन के बाद पंचतिक्तघृत गूगल दो दो गोली सवेरे सायं भोजन के बाद त्रिफला चूर्ण-एक एक ग्राम की मात्रा मे पानी के साथ सवेरे एवं रात को। थोड़ी सी पिसी हुई हल्दी, थोड़ा-सा दशांग लेप तथा थोड़ा सा पंचगुण तेल मिलाकर लेप तैयार करें। इसे वार्ट्स पर लगाएं तथा दो दो गोलियां कैशोर गूगल दिन में तीन बार पानी के साथ सेवन करते रहें।

मस्सों पर लगाने हेतु दवा

सज्जीखार-10 ग्राम

चूना (बिन बुझा)-10 ग्राम सोड़ा (वाशिंग) 10 ग्राम हलदी- 2 ग्राम

इन सबको बारीक पीसकर थोड़ा-सा पानी मिलाकर पेस्ट जैसा बनालें। माचिस की तीली पर रुई लगाकर फुरैरी से मस्से या कॉर्न्स पर लगाएं। नियमित रूप से लगाने से लाभ हो जाता है।

(2) ऐलोवेरा जैल को वार्ट्स पर लगाने से भी लाभ मिलता है। (3) वार्ट्स पर लहसुन की एक कली को धीमे-धीमे मसलने से भी ये विलुप्त होने लगते हैं।

Friday, August 16, 2024

आयुर्वेदिक भस्म और उन की सेवन विधिवह भस्म ही है

आयुर्वेदिक भस्म और उन की सेवन विधि
वह भस्म ही है यो हमे सभी रोगों में जल्दी पिर्नाम(रिजल्ट)देते है।चाहे हम ने बता दया है के कौन सा भस्म आप कौन कौन से रोगों में कितना कितना लेना है किस के साथ,,, फेर भी आप लेने से पहले किसी वैद,हकीम की सलाह जरूर लें। धन्यवाद्।
अकीक पिष्टी ___हृदय और मस्तिष्क को बल देने वाली तथा वात, पित्त नाशक, बल वर्धक
और सौम्य है।
अभ्रक भस्म___ (साधारण) : हृदय, फेफड़े, यकृत, स्नायु और मंदाग्नि से उत्पन्न रोगों की सुप्रसिद्ध दवा है। श्वास, खांसी, पुराना बुखार, क्षय, अम्लपित्त, संग्रहणी, पांडू, खून की कमी, धातु दौर्बल्य, कफ रोग, मानसिक दुर्बलता, कमजोरी आदि में लाभकारी है। मात्रा 3 से 6 रत्ती शहद, अदरक या दूध से।
अभ्रक भस्म____ (शतपुटी पुटी) (100 पुटी) : इसमें उपर्युक्त गुण विशेष मात्रा है। मात्रा 1 से 2 रत्ती।
अभ्रक भस्म ____(सहस्त्र पुटी) (1000 पुटी) : इसमें साधारण भस्म की अपेक्षा अत्यधिक गुण मौजूद रहते हैं। मात्रा 1/4 से 1 रत्ती।
कपर्दक ____(कौड़ी, वराटिका, चराचर) भस्म : पेट का दर्द, शूूल रोग, परिणाम शूल अम्लपित्त, अग्निमांद्य व फेफड़ों के जख्मों में लाभकारी। मात्रा 2 रत्ती शहद अदरक के साथ सुबह व शाम को।
कसीस भस्म ____रक्ताल्पता में अत्यधिक कमी, पांडू, तिल्ली, जिगर का बढ़ जाना, आम विकार, गुल्म आदि रोगों में भी लाभकारी। मात्रा 2 से 8 रत्ती।
कहरवा पिष्टी ____(तृणकांतमणि) : पित्त विकार, रक्त पित्त, सिर दर्द, हृदय रोग, मानसिक विकार, चक्कर आना व सब प्रकार के रक्त स्राव आदि में उपयोगी। मात्रा 2 रत्ती मक्खन के साथ।
कांतिसार ____(कांत लौह फौलाद भस्म) : खून को बढ़ाकर सभी धातुओं को बढ़ाना इसका मुख्य गुण है। खांसी, दमा, कामला, लीवर, प्लीहा, पांडू, उदर रोग, मंदाग्नि, धातुक्षय, चक्कर, कृमिरोग, शोथ रोगों में लाभकारी तथा शक्ति वर्द्धक। मात्रा 1/2 से 1 रत्ती।
गोदन्ती हरताल____ (तालक) भस्म : ज्वर, सर्दी, खांसी, जुकाम, सिर दर्द, मलेरिया, बुखार आदि में विशेष लाभकारी। मात्रा 1 से 4 रत्ती सुबह व शाम को शहद व तुलसी के रस में।
जहर मोहरा खताई भस्म____ शारीरिक एवं मानसिक बल को बढ़ाती है तथा विषनाशक है। अजीर्ण, कै, उल्टी, अतिसार, यकृत विकार, घबराहट, जीर्ण ज्वर, बालकों के हरे-पीले दस्त एवं सूखा रोग में लाभकारी। मात्रा 1 से 3 रत्ती शहद में।
जहर खताई पिष्टी ____गुण, जहर मोहरा खताई भस्म के समान, किंतु अधिक शीतल, घबराहट व जी मिचलाने में विशेष उपयोगी। मात्रा 1 से 3 रत्ती शर्बत अनार से ले
टंकण (सुहागा) ____भस्म : सर्दी, खांसी में कफ को बाहर लाती है। मात्रा 1 से 3 रत्ती शहद से।
ताम्र (तांबा) भस्म ____पांडू रोग, यकृत, उदर रोग, शूल रोग, मंदाग्नि, शोथ कुष्ट, रक्त विकार, गुर्दे के रोगों को नष्ट करती है तथा त्रिदोष नाशक है। मात्रा 1/2 रत्ती शहद व पीपल के साथ।
नाग (सीसा) भस्म ____वात, कफनाशक, सब प्रकार के प्रमेह, श्वास, खांसी, मधुमेह धातुक्षय, मेद बढ़ना, कमजोरी आदि में लाभकारी। मात्रा 1 रत्ती शहद से।
प्रवाल (मूंगा) भस्म ____पित्त की अधिकता (गर्मी) से होने वाले रोग, पुराना बुखार, क्षय, रक्तपित्त, कास, श्वास, प्रमेह, हृदय की कमजोरी आदि रोगों में लाभकारी। मात्रा 1 से 2 रत्ती शहद अथवा शर्बत अनार के साथ।
प्रवाल पिष्टी ____भस्म की अपेक्षा सौम्य होने के कारण यह अधिक पित्त शामक है। पित्तयुक्त, कास, रक्त, रक्त स्राव, दाह, रक्त प्रदर, मूत्र विकार, अम्लपित्त, आंखों की जलन, मनोविकार और वमन आदि में विशेष लाभकारी है। मात्रा 1 से 2 रत्ती शहद अथवा शर्बत अनार से।
पन्ना पिष्टी _____रक्त संचार की गति को सीमित करके विषदोष को नष्ट करने में उपयोगी है। ओज वर्द्धक है तथा अग्निप्रदीप्त कर भूख बढ़ाती है। शारीरिक क्षीणता, पुराना बुखार, खांसी, श्वास और दिमागी कमजोरी में गुणकारी है। मात्रा 1/2 रत्ती शहद से।
वंग भस्म ____धातु विकार, प्रमेह, स्वप्न दोष, कास, श्वास, क्षय, अग्निमांद्य आदि पर बल वीर्य बढ़ाती है। अग्निप्रदीप्त कर भूख बढ़ाती है तथा मूत्राशय की दुर्बलता को नष्ट करती है। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह व शाम शहद या मक्खन से।
मण्डूर भस्म ____जिगर, तिल्ली, शोथ, पीलिया, मंदाग्नि व रक्ताल्पता की उत्तम औषधि। मात्रा 2 रत्ती शहद से।
मयूर चन्द्रिका भस्म : हिचकी और श्वास (दमा) में अत्यंत गुणकारी है। वमन (उल्टी) व चक्कर आदि में लाभकारी। मात्रा 1 से 3 रत्ती शहद से।
माणिक्य पिष्टी ____समस्त शारीरिक और मानसिक विकारों को नष्ट कर शरीर की सब धातुओं को पुष्ट करती है और
 बुद्धि को बढ़ाती है। मात्रा 1/2 रत्ती से 2 रत्ती तक।
मुक्ता (मोती) भस्म ____शारीरिक और मानसिक पुष्टि प्रदान करने वाली प्रसिद्ध दवा है। चित्त भ्रम, घबराहट, धड़कन, स्मृति भंग, अनिद्रा, दिल-दिमाग में कमजोरी, रक्त पित्त, अम्ल पित्त, राजयक्षमा, जीर्ण ज्वर, उरुःक्षत, हिचकी आदि की श्रेष्ठ औषधि। मात्रा 1/2 से 1 रत्ती
तक।
मुक्ता शुक्ति भस्म____ रक्त पित्त, जीर्ण ज्वर, दाह, धातुक्षय, तपेदिक, मृगी, खांसी, यकृत, प्लीहा व गुल्म नाशक। मात्रा 2 रत्ती शहद से प्रातः व सायं।
मुक्ता (मोती) पिष्टी ____मुक्ता भस्म के समान गुण वाली तथा शीतल मात्रा। 1/2 से 1 रत्ती शहद या अनार के साथ।
मुक्ता शुक्ति पिष्टी ____मुक्ता शुक्ति भस्म के समान गुणकारी तथा प्रदर पर लाभकारी।
मृगश्चृ (बारहसिंगा) भस्म ____निमोनिया, पार्श्वशूल, हृदय रोग, दमा, खांसी में विशेष लाभदायक, बालकों की हड्डी बनाने में सहायक है। वात, कफ, प्रधान ज्वर, में गुणकारी। मात्रा 1 से 3 रत्ती शहद से।
यशद भस्म ____कफ पित्तनाशक है। पांडू, श्वास, खांसी, जीर्णज्वर, नेत्ररोग, अतिसार, संग्रहणी आदि रोगों में लाभदायक। मात्रा 1 रत्ती शहद से।
रजत (रौप्य, चांदी) भस्म ____शारीरिक व मानसिक दुर्बलता में लाभदायक है। वात, पित्तनाशक, नसों की कमजोरी, नपुंसकता, प्रमेह, धारुत दौर्बल्य, क्षय आदि नाशक तथा बल और आयु को बढ़ाने वाली है। मात्रा 1 रत्ती प्रातः व सायं शहद या मक्खन से।
लौह भस्म ____खून को बढ़ाती है। पीलिया, मंदाग्नि, प्रदर, पित्तविकार, प्रमेह, उदर रोग, लीवर, प्लीहा, कृमि रोग आदि नाशक है। व शक्ति वर्द्धक है। मात्रा 1 रत्ती प्रातः व सायं शहद और मक्खन के साथ।
लौह भस्म (शतपुटी) ____यह साधारण भस्म से अधिक गुणकारी है।
शंख भस्म ____कोष्ठ शूल, संग्रहणी, उदर विकार, पेट दर्द आदि रोगों में विशेष उपयोगी है। मात्रा 1 से 2 रत्ती प्रातः व सायं शहद से।
स्वर्ण माक्षिक भस्म____ पित्त, कफ नाशक, नेत्रविकार, प्रदर, पांडू, मानसिक व दिमागी कमजोरी, सिर दर्द, नींद न आना, मूत्रविकार तथा खून की कमी में लाभदायक। मात्रा 1 से 2 रत्ती प्रातः व सायं शहद से।
स्वर्ण भस्म ____इसके सेवन से रोगनाशक शक्ति का शरीर में संचार होता है। यह शारीरिक और मानसिक ताकत को बढ़ाकर पुराने से पुराने रोगों को नष्ट करता है। जीर्णज्वर, राजयक्षमा, कास, श्वास, मनोविकार, भ्रम, अनिद्रा, संग्रहणी व त्रिदोष नाशक है तथा वाजीकर व ओजवर्द्धक है। इसके सेवन से बूढ़ापा दूर होता है और शक्ति एवं स्फूर्ति बनी रहती है। मात्रा 1/8 से 1/2 रत्ती तक।
संगेयशव पिष्टी ____दिल व मेदे को ताकत देती है। पागलपन नष्ट करती है तथा अंदरूनी जख्मों को भरती है। मात्रा 2 से 8 रत्ती शर्बत अनार के साथ।
हजरूल यहूद भस्म ____पथरी रोग की प्रारंभिक अवस्था में देने से पथरी को गलाकर बहा देती है। पेशाब साफ लाती है और मूत्र कृच्छ, पेशाब की जलन आदि को दूर करती है। मात्रा 1 से 4 रत्ती दूध की लस्सी अथवा शहद से।
हजरूल यहूद पिष्टी ____अश्मीर (पथरी) में लाभकारी तथा मूत्रल।
हाथीदांत भस्म ____बालों का झड़ना रोकती है तथा नए बाल पैदा करती है। प्रयोग विधि : खोपरे के तेल के साथ मिलाकर लगाना चाहिए।
त्रिवंग भस्म ____प्रमेह, प्रदर व धातु विकारों पर। गदला गंदे द्रव्ययुक्त और अधिक मात्रा में बार-बार पेशाब होने पर इसका उपयोग विशेष लाभदायक है। धातुवर्द्धक तथा पौष्टिक है। मात्रा 1 से 3 रत्ती।

Sunday, July 21, 2024

आहार के नियम भारतीय 12 महीनों अनुसार

आहार के नियम भारतीय 12 महीनों अनुसार



#चैत्र ( मार्च-अप्रैल) – इस महीने में गुड का सेवन करे क्योकि गुड आपके रक्त संचार और रक्त को शुद्ध करता है एवं कई बीमारियों से भी बचाता है। चैत्र के महीने में नित्य नीम की 4 – 5 कोमल पतियों का उपयोग भी करना चाहिए इससे आप इस महीने के सभी दोषों से बच सकते है। नीम की पतियों को चबाने से शरीर में स्थित दोष शरीर से हटते है।

#वैशाख (अप्रैल – मई)- वैशाख महीने में गर्मी की शुरुआत हो जाती है। बेल पत्र का इस्तेमाल इस महीने में अवश्य करना चाहिए जो आपको स्वस्थ रखेगा। वैशाख के महीने में तेल का उपयोग बिल्कुल न करे क्योकि इससे आपका शरीर अस्वस्थ हो सकता है।

#ज्येष्ठ (मई-जून) – भारत में इस महीने में सबसे अधिक गर्मी होती है। ज्येष्ठ के महीने में दोपहर में सोना स्वास्थ्य वर्द्धक होता है , ठंडी छाछ , लस्सी, ज्यूस और अधिक से अधिक पानी का सेवन करें। बासी खाना, गरिष्ठ भोजन एवं गर्म चीजो का सेवन न करे। इनके प्रयोग से आपका शरीर रोग ग्रस्त हो सकता है।

#अषाढ़ (जून-जुलाई) – आषाढ़ के महीने में आम , पुराने गेंहू, सत्तु , जौ, भात, खीर, ठन्डे पदार्थ , ककड़ी, पलवल, करेला, बथुआ आदि का उपयोग करे व आषाढ़ के महीने में भी गर्म प्रकृति की चीजों का प्रयोग करना आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।

#श्रावण (जूलाई-अगस्त) – श्रावण के महीने में हरड का इस्तेमाल करना चाहिए। श्रावण में हरी सब्जियों का त्याग करे एव दूध का इस्तेमाल भी कम करे। भोजन की मात्रा भी कम ले – पुराने चावल, पुराने गेंहू, खिचड़ी, दही एवं हलके सुपाच्य भोजन को अपनाएं।

#भाद्रपद (अगस्त-सितम्बर) – इस महीने में हलके सुपाच्य भोजन का इस्तेमाल कर  वर्षा का मौसम् होने के कारण आपकी जठराग्नि भी मंद होती है इसलिए भोजन सुपाच्य ग्रहण करे।  इस महीने में चिता औषधि का सेवन करना चाहिए।

#आश्विन (सितम्बर-अक्टूबर) – इस महीने में दूध , घी, गुड़ , नारियल, मुन्नका, गोभी आदि का सेवन कर सकते है। ये गरिष्ठ भोजन है लेकिन फिर भी इस महीने में पच जाते है क्योकि इस महीने में हमारी जठराग्नि तेज होती है।

#कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर) – कार्तिक महीने में गरम दूध, गुड, घी, शक्कर, मुली आदि का उपयोग करे।  ठंडे पेय पदार्थो का प्रयोग छोड़ दे। छाछ, लस्सी, ठंडा दही, ठंडा फ्रूट ज्यूस आदि का सेवन न करे , इनसे आपके स्वास्थ्य को हानि हो सकती है।

#अगहन (नवम्बर-दिसम्बर) – इस महीने में ठंडी और अधिक गरम वस्तुओ का प्रयोग न करे।

#पौष (दिसम्बर-जनवरी) – इस ऋतू में दूध, खोया एवं खोये से बने पदार्थ, गौंद के लाडू, गुड़, तिल, घी, आलू, आंवला आदि का प्रयोग करे, ये पदार्थ आपके शरीर को स्वास्थ्य देंगे। ठन्डे पदार्थ, पुराना अन्न, मोठ, कटु और रुक्ष भोजन का उपयोग न करे।

#माघ (जनवरी-फ़रवरी) – इस महीने में भी आप गरम और गरिष्ठ भोजन का इस्तेमाल कर सकते है। घी, नए अन्न, गौंद के लड्डू आदि का प्रयोग कर सकते है।

#फाल्गुन (फरवरी-मार्च) – इस महीने में गुड का उपयोग करे। सुबह के समय योग एवं स्नान का नियम बना ले। चने का उपयोग न करे।

Sunday, June 2, 2024

कामोत्तेजक व स्तंभक योग व बाजीकरण योग

कामोत्तेजक व स्तंभक योग व बाजीकरण योग
सफेद मूसली 40 ग्राम
काली मूसली 40 ग्राम
गिलोयसत्व 40 ग्राम
सोंठ 40 ग्राम
छोटी पीपल 40 ग्राम
मुलेहठी40 ग्राम
 ईसबगोल 40 ग्राम
 तालमखाना 40 ग्राम
 बबूल का गोंद 40 ग्राम
 रूमी मस्तगी 40 ग्राम
बीजबन्द 40 ग्राम
लौंग 40 ग्राम
 जायफल 40 ग्राम
केसर 40 ग्राम
शुद्ध भांग 100 ग्राम
मिश्री धागे वाली - 700 ग्राम
 निमार्ण विधि -  भांग और मिश्री को छोड़ कर सभी बूटियों को कूट- पीस लें। इसमें धुली भांग 100 ग्राम तथा मिश्री 700 ग्राम पीसकर मिला लें। और किसी हवा बंद बर्तन में रख ले बस दवा तैयार हुआ 

सेवन विधि -  10 ग्राम रात को गर्म दूध के साथ लें। 

लाभ - यह अपूर्व बाजीकरण योग है। इसके सेवन से उतेजना एवं स्तम्भन दोनों प्राप्त होते हैं। अधेड़ आयु के पुरुषों के लिये यह बड़े काम की चीज है। अधिक विषय - भोग के कारण जिन पुरुषों को शीघ्रपतन हो जाता है और लिंग में पूरी उतेजना नहीं आती है तथा लिंग शिथिल रहता है, उन्हें इसका अवश्य सेवन करना चाहिये। मैथुन में पूरा आनन्द देता है। मैंने इसे कई रोगियों पर आजमाया है।

मैं एक ऐसे वैद्य राज  जी को जानता हूँ जो इसमें खोवा मिलाकर 20 20 ग्राम के पेड़े बनकर उन्हें मदनमोदक के नाम से बेचते हैं। सम्भोग से दो. घण्टे पूर्व के साथ लेने को कहते हैं। अधेड़ आयु के बहुत से लोग उनसे यह मोदक खरीदते हैं। मैंने कई बार उनसे योग पूछा तो उन्होंने नहीं बतलाया। मैंने योग जानने की तरकीब सोंची। उनके नौकर को लालच देकर उससे योग तथा उसे बनाने का तरीका ज्ञात किया तो पता चला कि यह चूर्ण है जिसमें वह खोवा बराबर मात्रा में मिलाकर मोदक तैयार करते हैं।

सर्दी स्पेशल

  1-           कामोत्तेजक व स्तंभक योग व बाजीकरण योग सफेद मूसली 40 ग्राम काली मूसली 40 ग्राम गिलोयसत्व 40 ग्राम सोंठ 40 ग्राम छोटी...